भए प्रगट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी
राजा दशरथ परम आनंद में मग्न हो गए उनके हृदय में हर्ष समाता ही नहीं था इस समय राजा ने अपनी प्यारी पत्नियों को बुलाया, कौशल्या आदि सब रानियां वहां चली आई राजा ने खीर का आधा भाग कौशल्या रानी को दिया और आधे के दो भाग किया, वह उनमें से एक भाग राजा ने कैकेयी को दिया ,शेष जो बच रहा उसके फिर दो भाग में राजा ने उनको कौशल्या और कैकेयी के हाथ पर अर्थात उनकी अनुमति लेकर और इस प्रकार उसका मन प्रसन्न करके सुमित्रा को दिया। इस प्रकार तीनों रानियां गर्भवती हुई वह तीनों ह्रदय में बहुत हर्षित हुई। उन्हें बहुत आश्चर्य और सुख मिल रहा था जिस दिन से श्री हरि लीला से ही गर्भ में आए सब लोगों में सुख और संपत्ति छा गई। शोभा,शील और तेज से सभी रानियां महल में सुशोभित हो रही थी। इस प्रकार कुछ समय सुखपूर्वक बीता और प्रभु के जन्म लेने का भी समय आ गया ,योग लग्न ग्रह बार और तिथि सब अनुकूल हो गए जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गए क्योंकि श्री राम का जन्म सुख का मूल है ,पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजीत मुहूर्त था, दोपहर का समय था न बहुत सर्दी थी वह पवित्र समय सब लोगों को शांति देने वाला था, शीतल मंद और सुगंधित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और संतों के मन में बड़ा बहुत प्रसन्नता हो रही थी वन खुशी के कारण पहले हुए थे पर्वतों के समूह प्रसन्नता से मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियों अमृत की धारा बहा रही थी जब ब्रह्मा जी ने भगवान के प्रकट होने का अवसर जाना, तब उनके सारे देवता विमान सजा सजा कर चले निर्मल आकाश देवताओं के समूह से भर गया ,गंधर्वों के समूह सहस्र गुना का दान करने लगे और सुंदर अंजलियों में सजा सजा कर पुष्प बरसने लगी आकाश में घमागम नगाड़े बजने लगे नाग भूमि और देवता शक्ति करने लगे बहुत प्रकार से अपनी सेवा उपहार भेंट करने लगे देवताओं के समूह विनती करके अपने-अपने लोक पहुंचे समस्त लोगों को शांति देने वाले जगत आधार प्रभु प्रकट हुए
समस्त लोगों को सुख शांति प्रदान करने वाले प्रभु का जन्म हुआ दीनों पर दया करने वाले, कौशल्या जी के हितकारी ,सभी पर कृपालु प्रभु प्रकट हुए । मुनियों के मन को हर्षाने वाले उनके अद्भुत रूप का विचार करके माता हृदय से पुलकित हो उठी ,नेत्रों को आनंद देने वाले, मेघ के समान श्यामल शरीर वाले ,प्रभु चारों भुजाओं में अपने विशिष्ट आयुध शंख, चक्र , गदा, पद्म धारण किए हुए थे और दिव्य आभूषण और वनमाला पहन रखी थी । कौशल्या नंदन के पुत्र के बड़े-बड़े नेत्र थे और इस प्रकार शोभा के समुद्र और खर राक्षस को मारने वाले भगवान का अवतार हुआ । मां कौशल्या दोनों हाथ जोड़कर कहने लगी है अनंत मैं किस प्रकार आपकी स्थिति करूं पेड़ और पुराण तुमको मायापुर और ज्ञान से परे और परिमाण रहित बदलते हैं श्रुतियों और संत जन वेद और संत जन दया और सुख का समुद्र सब गुना का धाम कहकर जिनका गान करते हैं वही भक्तों पर प्रेम करने वाले लक्ष्मीपति भगवान मेरे कल्याण के लिए मेरे पुत्र के रूप में प्रकट हुए हैं मां कौशल्या कहने लगी की बर कहते हैं कि तुम्हारे प्रत्येक रूप में माया के रचे हुए अनेकों ब्रह्मांडों के समूह भरे पड़े हैं वह तुम मेरे गर्भ में रहे इस हंसी की बात के सुनने पर विवेक की पुरुषों की बुद्धि भी कहां स्थित रह सकती है और अर्थात बड़े-बड़े विवेक की लोगों की बुद्धि भी इस बात को विचार करके विचलित हो जाती है जब माता को ज्ञान उत्पन्न हुआ तब प्रभु मंद मंद मुस्कान आने लगे मैं बहुत प्रकार के चरित करना चाहते हैं अतः उन्होंने पूर्व जन्म की सुंदर कथा कहकर माता को समझाया जिससे उन्हें पुत्र का वात्सल्य प्रेम प्राप्त हो पर और भगवान के प्रति पुत्र भाव उत्पन्न हो जाए माता की वह बुद्धि अब बदल गई तब मैं फिर बोली ताप यह रूप छोड़कर अत्यंत प्रिय बाल लीला करो मेरे लिए यह शुभ परम अनुपम होगा माता का यह वचन सुनकर देवताओं के स्वामी भगवान विष्णु ने बालक रूप होकर रोना शुरू कर दिया तुलसीदास जी कहते हैं जो इस चरित्र का दान करते हैं वे श्री हरि का पद स्वयं ही प्राप्त कर लेते हैं और फिर संसार संसार रूपी कृतों में कभी भी कहीं नहीं गिरते ब्राह्मण गांव देवता और संतों के लिए भगवान ने मनुष्य का अवतार लिया है वे अज्ञान रूपी मालिन माया और उसके गुण और बाहरी तथा भीतरी इंद्रलोक से परे हैं प्रभु का दिव्य शरीर उनकी इच्छाओं से ही बड़ा है किसी कर्म बंधन से परवरिश होकर त्रिगुणात्मक भौतिक पदार्थों के द्वारा नहीं । बच्चों के रोने की बहुत ही प्यारी ध्वनि सुनकर सभी रानियां रानी के महल की तरफ उतावली होकर दौड़ पड़ीं, और रानी के महल की सभी दासियां प्रसन्नता से इधर-उधर दौड़ने लगीं ,समस्त अयोध्या नगरी हर्ष उल्लास से भर गई ,महाराज दशरथ पुत्र जन्म के समाचार को कानों से सुनकर ब्रह्मानंद में ही समा गए। राजा का मन प्रेम में मग्न होकर प्रफुल्लित हो उठा, आनंद में अधीर शरीर के साथ बुद्धि को धीरज देते हुए और मन की प्रसन्नता को संभालते हुए ,वह उठाना चाहने लगे ,महाराज दशरथ की प्रसन्नता असीम होती मन में प्रेम भरते हुए बरसने लगी, महाराज दशरथ मन ही मन विचार करने लगे जिनका नाम सुनने से ही कल्याण होता है, वही प्रभु मेरे घर आए हैं उन्होंने बाजे वालों को बुलाकर कहा कि पूरी अयोध्या नगरी को संगीत मय कर दो ।
🙏🙏 बोलो श्री रामचंद्र की जय
Mohammed urooj khan
20-Apr-2024 11:12 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
19-Apr-2024 06:27 PM
👌🏻👏🏻
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Anjali korde
18-Apr-2024 02:51 PM
V nice
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